दोहा
अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार
बंदौ शिव-पद-कमल अमल अतीव उदार !!१!!
बंदौ शिव-पद-कमल अमल अतीव उदार !!१!!
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार
करो अनुग्रह दीन लखि अपनो बिरद विचार !!२!!
करो अनुग्रह दीन लखि अपनो बिरद विचार !!२!!
पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार
सहज सुहद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार!!३!!
सहज सुहद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार!!३!!
पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार
ढरौ तुरंत स्वभाववश, नेक न करौ अबार !!४!!
ढरौ तुरंत स्वभाववश, नेक न करौ अबार !!४!!
शिव चालीसा
जय शिव शंकर औढरदानी
जय गिरितनया मातु भवानी !!१!!
जय गिरितनया मातु भवानी !!१!!
सर्वोत्तम योगी योगेश्वर
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर !!२!!
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर !!२!!
सर्वलोक प्रेरक सर्वनियन्ता
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता !!३!!
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता !!३!!
पराशक्ति-पति अखिल विश्वपति
परब्रह्म परधाम परमगति !!४!!
परब्रह्म परधाम परमगति !!४!!
सर्वातीत अनन्य सर्वगत
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत !!५!!
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत !!५!!
अंगभूति-भूषित श्मशानचर
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर !!६!!
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर !!६!!
वृषवाहन नंदीगणनायक
अखिल विश्वके भाग्य-विधायक !!७!!
अखिल विश्वके भाग्य-विधायक !!७!!
व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर
रीछचर्म ओढे गिरिजावर !!८!!
रीछचर्म ओढे गिरिजावर !!८!!
कर त्रिशूल डमरूवर राजत
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत !!९!!
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत !!९!!
तनु कर्पूर-गौ उज्ज्वलतम
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम !!१०!!
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम !!१०!!
भाल त्रिपुण्ड मुण्डमाल शोभाकर
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर !!११!!
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर !!११!!
विधि-हरि-रुद्र त्रिविध वपुधारी
बने सृजन-पालन-लयकारी !!१२!!
बने सृजन-पालन-लयकारी !!१२!!
तुम हो नित्य दयाके सागर
आशुतोष आनन्द-उजागर !!१३!!
आशुतोष आनन्द-उजागर !!१३!!
अति दयालु भोले भण्डारी
अग-जग सबके मंगलकारे !!१४!!
अग-जग सबके मंगलकारे !!१४!!
सती-पार्वतीके प्राणेश्वर
स्कन्द-गणे-जनक शिव सुखकारी !!१५!!
स्कन्द-गणे-जनक शिव सुखकारी !!१५!!
हरि-हर एक रूप गुण्शीला
करत स्वामि-सेवककी लीला !!१६!!
करत स्वामि-सेवककी लीला !!१६!!
रहते दोउ पूजत पुजवावत
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत !!१७!!
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत !!१७!!
मारुति बन हरि-सेवा कीन्ही
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही !!१८!!
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही !!१८!!
जग-हित घोर हलाहल पीकर
बने सदाशिव नीलकंठ वर !!१९!!
बने सदाशिव नीलकंठ वर !!१९!!
असुरासुर शुचि वरद शुभंकर
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर !!२०!!
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर !!२०!!
‘नमः शिवाय’ मन्त्र पंचाक्षर
जपत मिटत सब क्लेश भयंकर !!२१!!
जपत मिटत सब क्लेश भयंकर !!२१!!
जो नर-नारि रटत शिव शिव नित
तिनको शिव अति करत परम्हित !!२२!!
तिनको शिव अति करत परम्हित !!२२!!
श्रीक्रूष्ण तप कीन्हों भारी
है प्रसन्न वर दियो पुरारी !!२३!!
है प्रसन्न वर दियो पुरारी !!२३!!
अर्जुन संग लडे किरात बन
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन !!२४!!
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन !!२४!!
भक्तनके सब कष्ट निवारे
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे !!२५!!
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे !!२५!!
शंखूचूड जालन्धर मारे
दैत्य अशंख्य प्राण हर तारे !!२६!!
दैत्य अशंख्य प्राण हर तारे !!२६!!
अन्धकको गणपति पद दीन्हों
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों !!२७!!
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों !!२७!!
तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं !!२८!!
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं !!२८!!
अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय
द्वादश ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्मय !!२९!!
द्वादश ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्मय !!२९!!
भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा !!३०!!
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा !!३०!!
काशी मरत जंतु अवलोकी
देत मुक्ति-पद करत अशोकी !!३१!!
देत मुक्ति-पद करत अशोकी !!३१!!
भक्त भगीरथकी रुचि राखी
जटा बसी गगा सुर साखी !!३२!!
जटा बसी गगा सुर साखी !!३२!!
रूरू अगस्त्य उपमन्यू ज्ञानी
ॠषि दधीचि आदिक विज्ञानी !!३३!!
ॠषि दधीचि आदिक विज्ञानी !!३३!!
शिवरहस्य शिव्ज्ञा प्रचारक
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक !!३४!!
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक !!३४!!
इनके शुभ सुमिरनतें शंकर
देत मुदित ह्वैअति दुर्लभ वर !!३५!!
देत मुदित ह्वैअति दुर्लभ वर !!३५!!
अति उदार करूणावरूणालय
हरण दैन्य-दारिद्र्य-दुःख-भय !!३६!!
हरण दैन्य-दारिद्र्य-दुःख-भय !!३६!!
तुम्हरोभजन परम हितकारी
विओर शूद्र सब ही अधिकारी !!३७!!
विओर शूद्र सब ही अधिकारी !!३७!!
बालक वृद्ध नारी-नर ध्यावहिं
ते अलभ्य शिवपदको पावहिं !!३८!!
ते अलभ्य शिवपदको पावहिं !!३८!!
भेदशून्य तुम सबके स्वामी
सहज सुहृद सेवक अनुगामी !!३९!!
सहज सुहृद सेवक अनुगामी !!३९!!
जो जन शरण तुम्हारी आवत
सकल दुरित तत्काल नशावत !!४०!!
सकल दुरित तत्काल नशावत !!४०!!
दोहा
बहन करौ तुम शीलवश, निज जन्कौ सब भार
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करौ सँभार !!१!!
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करौ सँभार !!१!!
तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय !!२!!
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय !!२!!
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करौ पाप सब छार !!३!!
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करौ पाप सब छार !!३!!
कृपा-सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र
राखी पदकमलनि सदा, हे कुपात्रके मित्र !!४!!
राखी पदकमलनि सदा, हे कुपात्रके मित्र !!४!!
ॐ नमः शिवाय
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