शिव परिवार के हर व्यक्ति के वाहन या उनसे जुड़े प्राणियों को देखें तो शेर-बकरी एक घाट पानी पीने का दृश्य साफ दिखाई देगा। शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, मगर शिवजी के तो आभूषण ही सर्प हैं। वैसे स्वभाव से मयूर और सर्प दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि साँप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती स्वयं शक्ति हैं, जगदम्बा हैं जिनका वाहन शेर है। मगर शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। बेचारे बैल की सिंह के आगे औकात क्या? परंतु नहीं, इन दुश्मनियों और ऊँचे-नीचे स्तरों के बावजूद शिव का परिवार शांति के साथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्नतापूर्वक समय बिताता है। विसंगतियों के बीच संतुलन का बढ़िया उदाहरण है शिव का परिवार।
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भगवान शंकर के परिवार में जितनी विभिन्नता है, उतनी ही एकता भी। ठीक वैसे ही, जैसे किसी घर में अलग-अलग स्वभाव के सदस्य होते हैं या फिर किसी कंपनी में विभिन्न प्रकार के लोग कार्य करते हैं। परिवार के मुखिया भगवान शिव भोले नाथ के रूप में जाने जाते हैं। उनके शरीर, पहनावे में किसी प्रकार का आकर्षण नहीं है। किंतु माता पार्वती, दोनों पुत्र, शिव गण और उनके भक्त उन्हें स्वामी मानते हैं। यानी बाहरी रूप और सौंदर्य से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आंतरिक गुण। आम दिनों में ध्यान में खोए रहने वाले शिव, मुखिया को ज्यादा विचारमग्न रहने का संदेश देते हैं। उनकी ध्यानावस्था में शिव परिवार का हर सदस्य अपने कर्म में लीन रहता है। माता पार्वती से लेकर श्री गणेश और नन्दी बैल तक। शिव ने विषधर सर्प के साथ समुद्र मंथन से निकला विष भी अपने गले में सहेजा है। कुटिल प्रकृति वाले लोगों को अपनी संगति में रखकर उन्हें शांत रखने का गुण उनसे सीखा जा सकता है। संयुक्त परिवार के मुखिया के लिए भी परिवार की भलाई के लिए विष जैसी कडवी बातों को अपने भीतर दबाकर रखना जरूरी हो जाता है।
पार्वती जी पारंपरिक भारतीय पत्नी की तरह पति की सेवा में तत्पर हैं। लेकिन वे स्त्री के महत्व को भी बता रही हैं। शिव की शक्ति वे स्वयं हैं। बिना उनके शिव अधूरे हैं और शिव का अर्ध नारीश्वररूप उनके अटूट रिश्ते का परिचायक है।
बुद्धि के देवता गणेश अपने से बेहद छोटी काया वाले चूहे की सवारी करते हैं। यह इस बात का संकेत है कि यदि आपमें बुद्धि है, तो कमजोर समझे जाने वाले व्यक्ति से बडा काम करवा सकते हैं। गृहस्वामी अपने परिवार के लोगों की और कंपनी का अधिकारी अपने स्टाफ के लोगों की क्षमताओं को अपने बुद्धि कौशल से बढा सकता है।*****************************************************************
भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। वे कल्याण की जन्मभूमि तथा परम कल्याणमय है। समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही है। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया शक्ति में भगवान शिव के जैसा कोई नहीं है। वे सभी मूल के कारण रक्षक पालक तथा नियन्ता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं। उनका आदि और अनंत न होने से वे अनंत है। वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के संपूर्ण दोषों को भी क्षमा कर देते हैं। भगवान शिव शंकर का परिवार भी बहुत व्यापक है। एकादश रूद्र, रूद्राणियां, चौंसठ योगिनियां, षोडश मातृकाएं, भैरव आदि इनके सहचर तथा सहचरी हैं। गणपति परिवार में उनकी पत्नी ऋद्धी सिद्धि तथा दो पुत्र शुभ लाभ हैं। उनका वाहन मूषक है। कार्तिकेय की पत्नि देवसना तथा वाहन मयूर है। भगवती पार्वती का वाहन सिंह है और स्वयं शिव जी नंदी पर सवार रहते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, एक बार भगवान धर्म की ईच्छा हुई की वह शिव जी का वाहन बनें। इसके लिए उन्होंने दीर्घकाल तक तपस्या की। अंत में शिव जी ने उन पर अनुग्रह किया और उन्हें अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया। बाण, रावण, चण्डी, भृंगी आदिशिव के मुख्य पार्षद हैं। इनके द्वारा रक्षक के रूप में र्कीर्तिमुख प्रसिद्ध हैं। इनकी पूजा के उपरांत ही शिव मंदिर में प्रवेश करके पूजा करने का विधान है। इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं।