ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः ।
ज्ञान बिना मुक्ति नहीं है ।
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आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते | नीयते तद् वॄथा येन प्रामाद: सुमहानहो ||
सब रत्न देने पर भी जीवन का एक क्षण भी वापास नही मिलता | ऐसे जीवन के क्षण जो निर्थक ही खर्च कर रहे है वे कितनी बडी गलती कर रहे है
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इंद्रियाणि पराण्याहु: इंद्रियेभ्य: परं मन: | मनसस्तु परा बुद्धि: यो बुद्धे: परतस्तु स: ||
इंद्रियों के परे मन है मन के परे बुद्धि है और बुद्धि के भी परे आत्मा है ।
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मनुष्य की देह के परे इंद्रियां, इंद्रियों के परे मन, मन के परे बुद्धि तथा बुद्धि के परे सूक्ष्म शरीर आत्मा है। ये सभी अंग प्रत्येक कार्य, व्यवहार एवं गुण-दोष के आधार पर एक दूसरे से भिन्न होने पर भी जुडे होते हैं। जहां शरीर तथा इन्द्रियां मन और बुद्धि के निर्देशानुसार भौतिक कार्यो में लगी रहती हैं, वहीं सूक्ष्म शरीर आत्मा आध्यात्मिक धर्मो का आचरण करती है।
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शिक्षक कभी साधारण नहीं होता | निर्माण और प्रलय उसकी गोद में खेलते हैं | आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य)
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वैसे देश मे न रहना जहाँ तुम्हारा आदर न हो, तुम अपनी जीविका न कमा सको , जहाँ तुम्हारा कोई मित्र न हो या जहाँ ज्ञान प्राप्ति न हो । आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य)
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संशय सबको खात है, संशय सबका पीर।
संशय की जो फाकी करे, उसका
नाम फकीर।।_____________________________________________
शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता की अभिव्यक्त्ति, जो सब मनुष्यों में पहले से ही विद्यमान है।
- स्वामी विवेकानंद
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न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत्।
विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥
जो
विश्वासपात्र न हो, उस पर
कभी विश्वास न करें और जो विश्वासपात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि
विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है।विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥
- वेदव्यास (महाभारत, शांति पर्व, 138। 144 - 45)
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कभी किसी के सामने अपनी सफाई पेश न करो, क्योंकि जिसे तुम पर यकीन है, उसे जरूरत नहीं और जिसे तुम पर यकीन नहीं वो मानेगा नही !!
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