नासदासीन्नोसदासीत्तादानीं नासीद्रजो नो व्योमापरो यत |
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरं ||
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं , आकाश भी नहीं था...
छिपा था क्या ,कहां,किसने ढका था....
उस पल तो आगम ,अटल जल भी कहां था...
सृष्टीका कौन है कर्ता ?...
कर्ता है वा अकर्ता ?
ऊंचे आकाशमे रहता...
सदा अध्यक्ष बना रहता...
वोही सच मुचमे जानता
या नही भी जानता...
है किसीको नही पता....
नही पता ,
नही है पता , नही है पता ......
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरं ||
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं , आकाश भी नहीं था...
छिपा था क्या ,कहां,किसने ढका था....
उस पल तो आगम ,अटल जल भी कहां था...
सृष्टीका कौन है कर्ता ?...
कर्ता है वा अकर्ता ?
ऊंचे आकाशमे रहता...
सदा अध्यक्ष बना रहता...
वोही सच मुचमे जानता
या नही भी जानता...
है किसीको नही पता....
नही पता ,
नही है पता , नही है पता ......
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीत ।
स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवायहविषा विधेम ॥
वो था हिरण्यगर्भ सृष्टीसे पहले विद्यमान...
वोही तो सारे भूत जातीका स्वामी महान...
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर....
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
जिसके बलपर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर....
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर....
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
गर्भमे अपने अग्नि धारण कर पैदा कर...
व्याप था जल इधर , उधर ,नीचे, उपर
जागा जो देवोंका एकमेव प्राण बनकर..
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
ओम! सृष्टी निर्माता स्वर्ग रचैता , पूर्वज रक्षा कर...
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर...
फैली है दिशायें बाहों जैसी , उसकी सबमे, सबपर..
ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर..
ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर...
स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवायहविषा विधेम ॥
वो था हिरण्यगर्भ सृष्टीसे पहले विद्यमान...
वोही तो सारे भूत जातीका स्वामी महान...
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर....
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
जिसके बलपर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर....
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर....
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
गर्भमे अपने अग्नि धारण कर पैदा कर...
व्याप था जल इधर , उधर ,नीचे, उपर
जागा जो देवोंका एकमेव प्राण बनकर..
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर ?
ओम! सृष्टी निर्माता स्वर्ग रचैता , पूर्वज रक्षा कर...
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर...
फैली है दिशायें बाहों जैसी , उसकी सबमे, सबपर..
ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर..
ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर...