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सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ।।

Tuesday, August 09, 2011

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्



द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥१॥

श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥२॥

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥३॥

कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे॥४॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥५॥

याम्ये सदंगे नगरेतिऽरम्ये विभूषितांगम् विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥६॥

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे॥७॥

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे॥८॥

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥९॥

यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि॥१०॥

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥११॥

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये॥१२॥

ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥

जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक इस द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करता है, उसे साक्षात द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के समान ही लाभ प्राप्त होता है।

Monday, August 08, 2011

विद्वत्त्वं च नृपत्वं च



विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्ये कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्‌ सर्वत्र पूज्यते॥
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स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥
मूर्ख की अपने घर में पूजा होती है. मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है. राजा की अपने देश में पूजा होती है. लेकिन विद्वान की हर जगह पूजा होती है




Monday, June 20, 2011

अर्धनारीश्वर स्तोत्र



चाम्पेयगौरार्धशरीरकाये कर्पूरगौरार्धशरीरकाय
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
चम्पाके पुष्प समान गौर अर्ध शरीरवाले पार्वतीजीको एवम कर्पूर समान गौर अर्ध शरीरवाले शिवजीको, मोती और फूलोसे सुशोभित केशवाले [धम्मिल्लकायै] शिवाको एवम जटावाले शिवजीको प्रणाम
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजःपुंजविचर्चिताय
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
कस्तुरी और कुमकुमसे लिपटे हुए पार्वतीजीको एवम चिताकी राखके ढेरसे लिपटे हुए शिवजीको, कामदेवको जगानेवाले शिवाको एवम कामदेवका नाश करनेवाले शिवजीको प्रणाम.
चलत्क्रणत्कंकणनूपुरायै पादब्जराजत्फणिनूपुराय
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके हाथमें खनकते हुए कंगन और पैरमें नूपुर है एवम जिनके चरणकमलमें सर्परूपी नूपुर हैऔर जिनकी भूजा पर सोनेके बाजुबंद [अंगद] लिपटे हुए है ऐसे शिवाको एवम जिनकी भूज पर सर्पोके बाजुबंद लिपटे हुए है ऐसे शिवजीको प्रणाम
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय
प्रसन्न नीलक्मल समान नेत्रवालेको एवम संपूर्ण तरहसे विकसित कमल समान नेत्रवालेको, दो नेत्रवाले शिवाको और त्रिनेत्रवाले शिवजीको प्रणाम
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके घुंघराले बाल मंदार पुष्पोकी मालासे सुशोभित है एवम जिनकी गरदन खोपडीओंकी मालासे सुशोभित है, जिसने दिव्य वस्त्र धारण किये हो एवम जिसने दिशाओंके वस्त्र धारण किये याने निःवस्त्र हो ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके श्यामल केश जलसे भरे बादल [अम्भोधर] समान है एवम जिनकी ताम्रवर्णीय जटा चमकीली बीजली समान है, जो हंमेशा स्वतंत्र है यानी जिनके कोई ईश्वर नहीं है एवम जो सर्व लोकके स्वामी है ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय
जो विश्वप्रपंचके सर्जनके अनुकूल नृत्य करनेवालेको एवम समस्त विश्वप्रपंचका संहार करनेवाला तांडव नृत्य करनेवालेको, विश्वमाताको एवम विश्वपिताको अर्थात शिवा शिवको प्रणाम
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिन्होंने अति झगमगते रत्नोके उज्जवल कुंडल पहने है एवम जिन्होंने अति भयानक सर्पोंके आभुषण पहने है, जो शिवजीसे समन्वित हुए हो एवम जो शिवासे शिवा [पार्वतीजी]से समन्वित हुए हो ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
एतत्पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात्सदा तस्य समस्तसिद्धिः
जो मनुष्य यह ईष्ट वस्तुका प्रदान करनेवाला अष्टकका भक्तिपूर्वक पाठ करता है वह संसारमें सन्मानित होता है, दीर्घायु होता है, अनंत काल तक वह सौभाग्य प्राप्त करता है एवम उसको हम्मेश समस्त सिद्धि प्राप्त होती है

ओ३म् जय शिवशक्ति हरे ( आरती )




Thursday, May 19, 2011

भारत एक खोज


नासदासीन्नोसदासीत्तादानीं नासीद्रजो नो व्योमापरो यत |
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरं
||

सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं


अंतरिक्ष भी नहीं
, आकाश भी नहीं था...
छिपा था क्या
,कहां,किसने ढका था....
उस पल तो आगम
,अटल जल भी कहां था...

सृष्टीका कौन है कर्ता
?...
कर्ता है वा अकर्ता
?
ऊंचे आकाशमे रहता...

सदा अध्यक्ष बना रहता...

वोही सच मुचमे जानता

या नही भी जानता...

है किसीको नही पता....

नही पता
,
नही है पता
, नही है पता ......
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीत ।
स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवायहविषा विधेम ॥


वो था हिरण्यगर्भ सृष्टीसे पहले विद्यमान...

वोही तो सारे भूत जातीका स्वामी महान...

जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर....

ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर
?

जिसके बलपर तेजोमय है अम्बर

पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर....

स्वर्ग और सूरज भी स्थिर....

ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर
?

गर्भमे अपने अग्नि धारण कर पैदा कर...

व्याप था जल इधर
, उधर ,नीचे, उपर
जागा
जो देवोंका एकमेव प्राण बनकर..
ऐसे किस देवता की उपासना करे हम हवि देकर
?

ओम! सृष्टी निर्माता स्वर्ग रचैता
, पूर्वज रक्षा कर...
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर...

फैली है दिशायें बाहों जैसी
, उसकी सबमे, सबपर..

ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर..

ऐसे ही देवता की उपासना करे हम हवि देकर...

Monday, April 25, 2011

शिव पंचाक्षर स्त्रोत


नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥
हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार ।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय|
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥
चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥
हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय|
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥
हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा  है।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।

Wednesday, April 13, 2011

शिवशक्ति परिवार

शिव परिवार के हर व्यक्ति के वाहन या उनसे जुड़े प्राणियों को देखें तो शेर-बकरी एक घाट पानी पीने का दृश्य साफ दिखाई देगा। शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, मगर शिवजी के तो आभूषण ही सर्प हैं। वैसे स्वभाव से मयूर और सर्प दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि साँप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती स्वयं शक्ति हैं, जगदम्बा हैं जिनका वाहन शेर है। मगर शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। बेचारे बैल की सिंह के आगे औकात क्या? परंतु नहीं, इन दुश्मनियों और ऊँचे-नीचे स्तरों के बावजूद शिव का परिवार शांति के साथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्नतापूर्वक समय बिताता है। विसंगतियों के बीच संतुलन का बढ़िया उदाहरण है शिव का परिवार।
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भगवान शंकर के परिवार में जितनी विभिन्नता है, उतनी ही एकता भी। ठीक वैसे ही, जैसे किसी घर में अलग-अलग स्वभाव के सदस्य होते हैं या फिर किसी कंपनी में विभिन्न प्रकार के लोग कार्य करते हैं। परिवार के मुखिया भगवान शिव भोले नाथ के रूप में जाने जाते हैं। उनके शरीर, पहनावे में किसी प्रकार का आकर्षण नहीं है। किंतु माता पार्वती, दोनों पुत्र, शिव गण और उनके भक्त उन्हें स्वामी मानते हैं। यानी बाहरी रूप और सौंदर्य से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आंतरिक गुण। आम दिनों में ध्यान में खोए रहने वाले शिव, मुखिया को ज्यादा विचारमग्न रहने का संदेश देते हैं। उनकी ध्यानावस्था में शिव परिवार का हर सदस्य अपने कर्म में लीन रहता है। माता पार्वती से लेकर श्री गणेश और नन्दी बैल तक। शिव ने विषधर सर्प के साथ समुद्र मंथन से निकला विष भी अपने गले में सहेजा है। कुटिल प्रकृति वाले लोगों को अपनी संगति में रखकर उन्हें शांत रखने का गुण उनसे सीखा जा सकता है। संयुक्त परिवार के मुखिया के लिए भी परिवार की भलाई के लिए विष जैसी कडवी बातों को अपने भीतर दबाकर रखना जरूरी हो जाता है।
पार्वती जी पारंपरिक भारतीय पत्‍‌नी की तरह पति की सेवा में तत्पर हैं। लेकिन वे स्त्री के महत्व को भी बता रही हैं। शिव की शक्ति वे स्वयं हैं। बिना उनके शिव अधूरे हैं और शिव का अर्ध नारीश्वररूप उनके अटूट रिश्ते का परिचायक है।
बुद्धि के देवता गणेश अपने से बेहद छोटी काया वाले चूहे की सवारी करते हैं। यह इस बात का संकेत है कि यदि आपमें बुद्धि है, तो कमजोर समझे जाने वाले व्यक्ति से बडा काम करवा सकते हैं। गृहस्वामी अपने परिवार के लोगों की और कंपनी का अधिकारी अपने स्टाफ के लोगों की क्षमताओं को अपने बुद्धि कौशल से बढा सकता है।
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 भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। वे कल्याण की जन्मभूमि तथा परम कल्याणमय है। समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही है। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया शक्ति में भगवान शिव के जैसा कोई नहीं है। वे सभी मूल के कारण रक्षक पालक तथा नियन्ता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं। उनका आदि और अनंत न होने से वे अनंत है। वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के संपूर्ण दोषों को भी क्षमा कर देते हैं। भगवान शिव शंकर का परिवार भी बहुत व्यापक है। एकादश रूद्र, रूद्राणियां, चौंसठ योगिनियां, षोडश मातृकाएं, भैरव आदि इनके सहचर तथा सहचरी हैं। गणपति परिवार में उनकी पत्नी ऋद्धी सिद्धि तथा दो पुत्र शुभ लाभ हैं। उनका वाहन मूषक है। कार्तिकेय की पत्नि देवसना तथा वाहन मयूर है। भगवती पार्वती का वाहन सिंह है और स्वयं शिव जी नंदी पर सवार रहते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, एक बार भगवान धर्म की ईच्छा हुई की वह शिव जी का वाहन बनें। इसके लिए उन्होंने दीर्घकाल तक तपस्या की। अंत में शिव जी ने उन पर अनुग्रह किया और उन्हें अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया। बाण, रावण, चण्डी, भृंगी आदिशिव के मुख्य पार्षद हैं। इनके द्वारा रक्षक के रूप में र्कीर्तिमुख प्रसिद्ध हैं। इनकी पूजा के उपरांत ही शिव मंदिर में प्रवेश करके पूजा करने का विधान है। इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं।



गीता - सार


गीता - सार
1)   क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, मरती है।
2)   जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह भी अच्छा ही हो रहा है, और जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप करो। भविष्य की चिन्ता करो। वर्तमान चल रहा है।
3)   तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
4)   खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
5)   परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
6)   यह शरीर तुम्हारा है, तुम शरीर के हो। यह आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
7)   तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
8)   जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से तू सदा जीवन-मुक्त का आन्दन अनुभव करेगा।

Symbolism of Shiv Ling (or Shiva Linga) in Hinduism : शिवलिंग का रहस्य

ShivShakti Ekatm Rahasya